Saturday, 7 February 2015



भारतीय विज्ञान के आधुनिक युगपुरूष – अब्दुल कलाम


अब्दूल कलाम का पूरा नाम 'डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम' है। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम तमिलनाडु में हुआ।  संभवतः रामेश्वरम के प्राकृतिक सौन्दर्य, समुद्र की निकटता के कारण वे सदैव बहुत दर्शनीय रहे। इनके पिता 'जैनुलाब्दीन' न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। वे नाविक थे, और नियम के बहुत पक्के थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।

अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के पिता चारों वक़्त की नमाज़ पढ़ते थे और जीवन में एक सच्चे इंसान थे।
अब्दुल कलाम के जीवन की एक घटना है, कि यह भाई-बहनों के साथ खाना खा रहे थे। इनके यहाँ चावल खूब होता था, इसलिए खाने में वही दिया जाता था, रोटियाँ कम मिलती थीं। जब इनकी मां ने इनको रोटियाँ ज़्यादा दे दीं, तो इनके भाई ने एक बड़े सच का खुलासा किया। इनके भाई ने अलग ले जाकर इनसे कहा कि मां के लिए एक-भी रोटी नहीं बची और तुम्हें उन्होंने ज़्यादा रोटियाँ दे दीं। वह बहुत कठिन समय था और उनके भाई चाहते थे कि अब्दुल कलाम ज़िम्मेदारी का व्यवहार करें। तब यह अपने जज़्बातों पर काबू नहीं पा सके और दौड़कर माँ के गले से जा लगे। उन दिनों कलाम कक्षा पाँच के विद्यार्थी थे। इन्हें परिवार में सबसे अधिक स्नेह प्राप्त हुआ क्योंकि यह परिवार में सबसे छोटे थे। तब घरों में विद्युत नहीं थी और केरोसिन तेल के दीपक जला करते थे, जिनका समय रात्रि 7 से 9 तक नियत था। लेकिन यह अपनी माता के अतिरिक्त स्नेह के कारण पढ़ाई करने हेतु रात के 11 बजे तक दीपक का उपयोग करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन में इनकी माता का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
जिस घर अब्दुल कलाम का जन्म हुआ, वह आज भी रामेश्वरम में मस्जिद मार्ग पर स्थित है। इसके साथ ही इनके भाई की कलाकृतियों की दुकान भी संलग्न है। यहाँ पर्यटक इसी कारण खिंचे चले आते हैं, क्योंकि अब्दुल कलाम का आवास स्थित है। 1964 में 33 वर्ष की उम्र में डॉक्टर अब्दुल कलाम ने जल की भयानक विनाशलीला देखी और जल की शक्ति का वास्तविक अनुमान लगाया। चक्रवाती तूफ़ान में पायबन पुल और यात्रियों से भरी एक रेलगाड़ी के साथ-साथ अब्दुल कलाम का पुश्तैनी गाँव धनुषकोड़ी भी बह गया था। जब यह मात्र 19 वर्ष के थे, तब द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को भी महसूस किया। युद्ध का दवानल रामेश्वरम के द्वार तक पहुँचा था। इन परिस्थितियों में भोजन सहित सभी आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया था।
अब्दुल कलाम 'एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी' में आए, तो इसके पीछे इनके पाँचवीं कक्षा के अध्यापक 'सुब्रहमण्यम अय्यर' की प्रेरणा थी। वह हमारे स्कूल के अच्छे शिक्षकों में से एक थे। एक बार उन्होंने कक्षा में बताया कि पक्षी कैसे उड़ता है? मैं यह नहीं समझ पाया था, इस कारण मैंने इंकार कर दिया था। तब उन्होंने कक्षा के अन्य बच्चों से पूछा तो उन्होंने भी अधिकांशत: इंकार ही किया। लेकिन इस उत्तर से अय्यर जी विचलित नहीं हुए। अगले दिन अय्यर जी इस संदर्भ में हमें समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। तत्पश्चात्त उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो 10-20 के झुण्ड में उड़ रहे थे। अब्दुल कलाम अपनी शिक्षा और जीवन के उद्देश्य के बारे में कहते है - मेरे लिए यह मात्र पक्षी की उड़ान तक की ही बात नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ। उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि मेरी शिक्षा किसी न किसी प्रकार के उड़ान से संबंधित होगी। उस समय तक मैं नहीं समझा था कि मैं 'उड़ान विज्ञान' की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ। वैसे उस घटना ने मुझे प्रेरणा दी थी कि मैं अपनी ज़िंदगी का कोई लक्ष्य निर्धारित करूँ। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि उड़ान में करियर बनाऊँगा।
एक दिन मैंने अपने अध्यापक 'श्री सिवा सुब्रहमण्यम अय्यर' से पूछा कि श्रीमान! मुझे यह बताएं कि मेरी आगे की उन्नति उड़ान से संबंधित रहते हुए कैसे हो सकती है? तब उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया कि मैं पहले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करूँ, फिर हाई स्कूल। तत्पश्चात कॉलेज में मुझे उड़ान से संबंधित शिक्षा का अवसर प्राप्त हो सकता है। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो उड़ान विज्ञान के साथ जुड़ सकता हूँ। इन सब बातों ने मुझे जीवन के लिए एक मंज़िल और उद्देश्य भी प्रदान किया। जब मैं कॉलेज गया तो मैंने भौतिक विज्ञान विषय लिया। जब मैं अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए 'मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी' में गया तो ने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चुनाव किया। इस प्रकार मेरी ज़िन्दगी एक 'रॉकेट इंजीनियर', 'एयरोस्पेस इंजीनियर' और 'तकनीकी कर्मी' की ओर उन्मुख हुई। वह एक घटना जिसके बारे में मेरे अध्यापक ने मुझे प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाया था, मेरे जीवन का महत्त्वपूर्ण बिन्दु बन गई और अंतत: मैंने अपने व्यवसाय का चुनाव भी कर लिया।
इसी तरह से वे गणित के अध्यापक 'प्रोफेसर दोदात्री आयंगर' तथा एम.आई.टी.'प्रोफेसर श्रीनिवास' (जो डायरेक्टर भी थे) का भी अपन् जीवन में बहुत योगदान मानते हैं।
1962 में वे 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' में आये। डॉक्टर अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीयप्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। जुलाई 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी 'अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब' का सदस्य बन गया। 'इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम' को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को डिज़ाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के 'विज्ञान सलाहकार' तथा 'सुरक्षा शोध और विकास विभाग' के सचिव थे। उन्होंने स्ट्रेटेजिक मिसाइल्स सिस्टम का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर विस्फोट भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। डॉक्टर कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की। यह भारत सरकार के 'मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार' भी रहे।
डॉ. अब्दुल कलाम की पहल पर भारत द्वारा एक रूसी कंपनी के सहयोग से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया गया। फरवरी 1998 में भारत और रूस के बीच समझौते के अनुसार भारत में ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। 'ब्रह्मोस' एक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है जो धरतीसमुद्र, तथा हवा, कहीं भी दागी जा सकती है। यह पूरी दुनिया में अपने तरह की एक ख़ास मिसाइल है जिसमें अनेक खूबियां हैं। वर्ष 1990 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र ने अपने मिसाइल कार्यक्रम की सफलता पर खुशी मनाई। डॉ. अब्दुल कलाम और डॉ. अरूणाचलम को भारत सरकार द्वारा 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया।
डॉक्टर अब्दुल कलाम भारत के ग्यारवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन.डी.. घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया। 18 जुलाई, 2002 को डॉक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा 'भारत का राष्ट्रपति' चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ। भारतीय जनता पार्टी में इनके नाम के प्रति सहमति न हो पाने के कारण यह दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनाए जा सके।
डॉक्टर कलाम ने अपने लेखन से भी हमें समृद्ध किया उनकी चर्चित पुस्तकों में 'विंग्स ऑफ़ फायर', 'इण्डिया 2020- ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' , 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया' , महाशक्ति भारत ,हमारे पथ प्रदर्शक , हम होंगे कामयाब, अदम्य साहस, छुआ आसमान, भारत की आवाज़ तथा टर्निंग प्वॉइंट्स हैं।
वर्तमान में डॉ. कलाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद तथा भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर में आगंतुक प्रोफेसर हैं। साथ ही भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान तिरूवंतपुरम् में कुलाधिपति तथा अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई में एयरो इंजीनियरिंग के प्रध्यापक के पद में नियुक्त हैं। आज 82 वर्ष की उम्र में भी उनकी अकादमिक सक्रियता देखने लायक है। ऐसे युगपुरुष के बारे में जितना भी कुछ कहा जाय, वह कम ही है।




वर्ष 2014 विज्ञान और तकनीक एक नज़र

बीते हुए को जब हम स्मृतियों में दर्ज़ करते हैं, तो अनायास ही हमारे मस्तिष्क में उसके दृश्य चलने लगते हैं। इस संदर्भ में आज वर्ष 2014 हमारे सामने है। यूँ तो अपने श्रोताओं को पूरे साल  देश-विदेश की वैज्ञानिक गतिविधियों से परिचित करवाते रहे हैं। आइए आज हम एक नज़र में वर्ष 2014 की वैज्ञानिक उपलब्धियों को देखने का प्रयास करें। हमारे समय में विज्ञान इतना समृद्ध हो चुका है कि दुनिया के किसी न किसी कोने में रोज़ ही कोई नया अनुसंधान होता है, जो मानव जीवन को और सुगम बनाता है। वर्ष 2014 में हुई सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों को यहाँ पर बता पाना सम्भव नहीं होगा। इसलिए हमने दैनिक जीवन से सीधे-सीधे जुड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों को यहाँ पर संकलित करने का प्रयास किया है। इस प्रयास में भारतवर्ष की वैज्ञानिक उपलब्धियों को विशेष रूप से रेखांकित करना हमारी प्राथमिकता रही है।  

शुरूआत जनवरी 2014 से करते हैं। 5 जनवरी 2014 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जिसे संक्षिप्त में इसरो कहते हैं, ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी डी 5) का स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफल प्रक्षेपण किया । इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो यानि भारत, अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के बाद विश्व की छठी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल प्रक्षेपण किया। इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन के अनुसार जीएसएलवी डी 5 का प्रक्षेपण 19 अगस्त 2013 को किया जाना था लेकिन ईंधन लीक होने के बाद अंतिम समय में प्रक्षेपण स्थगित कर दिया गया था। यह प्रक्षेपण भारत की ओर से जीएसएलवी का आठवां प्रक्षेपण है और यह जीएसएलवी की चौथी उड़ान है। जीएसएलवी डी-5 49.13 मीटर लंबा और 415 टन वजनी है। इस पर 365 करोड़ रुपये की लागत आई। जीएसएलवी ठोस, तरल और क्रायोजेनिक स्टेज के साथ तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है।

13 जनवरी 2014 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हरियाणा के फतेहाबाद जिले में 2,800 मेगावाट क्षमता वाले परमाणु ऊर्जा संयंत्र की नींव रखी। इसका नाम अणु विद्युत परियोजना है। इस परियोजना में 700 मेगावाट क्षमता वाली चार इकाईयां होंगी। इसके निर्माण कुल लागत 23,502 करोड़ रुपये हैं। इस संयंत्र में प्रेशराइज्ड भारी जल रिएक्टर्स का प्रयोग होगा।

21 जनवरी 2014 को ख़बर आयी कि भारतीय समाज में प्राचीन काल से जिस तुलसी का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में किया जाता रहा है। उस पर अमरीका की नज़र पड़ गयी है। अमेरिका स्थित वेस्टर्न केंटुकी यूनिवर्सिटी, (Western Kentucky University) के वैज्ञानिकों ने तुलसी का औषधीय मूल्य बढ़ाने के लिए उसे आनुवंशिक रूप से रूपांतरित किया। वैज्ञानिकों ने तुलसी में पाए जाने वाले एक यौगिक यूगेनॉल को अधिक मात्रा में उत्पन्न करने के लिए उसे आनुवंशिक रूप से रूपांतरित किया। यूगेनॉल में वक्ष कैंसर के उपचार हेतु औषधिय गुण हैं।
23 जनवरी 2014 को अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान मार्स रोवर ऑपोर्च्यूनिटी ने अपनी खोज में, मंगल पर कभी जीवन के अनुकूल ताजा पानी होने की पुष्टि की। ऑपोर्च्यूनिटी ने मार्स पर स्थित 'इंडेवर' नामक प्राचीन जलयुक्त चट्टानों का विश्लेषण किया। इससे पूर्व में किये गए परीक्षणों में अम्लीय, नमकीन पानी की छापों के विपरीत ऑपोर्च्यूनिटी ने स्मेक्टाइट्स नामक संकेतसूचक मृत्तिकाएँ खोजीं, जो पीएच-न्यूट्रल पानी में बनती हैं। रोवर ऑपोर्च्यूनिटी के द्वारा प्रेषित नये निष्कर्षों से एक ऐसे मंगल ग्रह की कल्पना की जा सकता है जो अपने प्रारंभिक लगभग एक अरब वर्षों में आज से कहीं ज्यादा गर्म था और जिसकी सतह पर ताजा पानी के तालाब थे। क्रमिक रूप से उस पर जलीय गतिविधि घट गई और जो बचा, वह अम्लीय हो गया और फिर लगभग तीन अरब वर्ष पूर्व से मंगल ग्रह सूखना आरंभ हो गया।
12 फरवरी 2014 को भारत के पहले अंतरिक्ष यान मंगलयान ने अपने मिशन के 100 दिन सफलता पूर्वक पूरे कर लिए। मंगलयान को मंगल ग्रह के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए 5 नवम्‍बर 2013 को सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र, श्रीहरिकोटा से भेजा गया था।
23 फरवरी 2014 को भारतीय मूल के 12 वर्षीय बच्चे शुभम बनर्जी ने एक किफायती ब्रेल प्रिंटर विकसित करने में कामयाबी हासिल की। मात्र 350 डॉलर मूल्य की लेगो माइंडस्ट्रोम्स ईवी3 सेट का इस्तेमाल कर नेत्रहीनों की मदद के लिए यह ब्रेल प्रिंटर बनाया है। लेगो माइंडस्ट्रोम्स ईवी3 एक उल्लेखनीय, शक्तिशाली और कार्यात्मक रोबोटिक किट है, जिसे किसी भी उम्र का व्यक्ति प्रभावशाली और जटिल प्रोजेक्ट बनाने में इस्तेमाल कर सकता है। ब्रेल और लेगो के मेल से बने इस प्रिंटर को ब्रेगो नाम दिया गया है। उपयोगकर्ता अक्षर में टाइप कर सकते हैं और ब्रेगो की सूई अनूदित संदेश को पेपर पर डॉट्स के जरिए उभार देगी।
वैज्ञानिक जर्नल 'नेचर' के 3 मार्च 2014 के अंक में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार सेंटर फॉर द एड्स प्रोग्राम ऑफ रिसर्च ने एक दवा की खोज़ कर ली है, जो एचआईवी के मल्टीपल स्ट्रेंस को बेअसर करके उन्हें मार सकते हैं। एक दक्षिण अफ्रीकी महिला के शरीर ने प्रबल रोग प्रतिकारक निर्मित करके एचआईवी संक्रमण को नष्ट कर दिया था। शोधकर्ताओं ने इस महिला के रोग प्रतिरोधक गुणों पर शोध करके यह सफलता प्राप्त की।
21 मार्च 2014 को विश्व का सबसे बड़ा टेलीवीजन - बिग हॉस, अमेरिका के पोर्टवर्थ स्थित टेक्सास मोटर स्पीडवे में प्रदर्शित किया गया. बिग हॉस को गीनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में विश्व के सबसे बड़े टेलीवीजन के तौर पर दर्ज किया गया है। बिग हॉस की स्क्रीन 218 फीट लंबी तथा 94.6 फीट ऊंची है और यह किसी सात मंजिला इमारत से कहीं अधिक ऊंची है तथा बोइंग के सबसे बड़े 767 फ्लाइट के अधिक लंबी है। बिग हॉस का निर्माण पैनॉसोनिक कंपनी ने किया है। हमें याद है कि वर्ष 2013 में, सैमसंग ने विश्व का सबसे बड़ा टीवी बनाया था जो कि 110 इंच का था।
26 मार्च 2014 को प्रकाशित ख़बर के अनुसार इंडियन कंप्यूटर इंमरडजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटीइन) ने स्मार्टफोन वायरस डेंड्रायट का पता लगाया है। टीम ने एंड्रायट स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को इस डेंड्रायड वायरस से सावधान रहने को कहा है क्योंकि यह वायरस आपके फोन के डेटा के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। एक वार एक्टिवेट हो जाने पर यह वायरस उपयोगकरत्ओं के व्यक्तिगत एंड्रायड फोन के कमांड और सरवर को बदल सकता है और फोन पर आने वाले या फोन से भेजे जाने वाले निजी एसएमएस को बीच में ही रोक सकता है।
8 अप्रैल 2014 को इस्राइल के स्टोरडॉट ने स्मार्टफोन के लिए एक नई बैटरी विकसित की। जो आपके स्मार्टफोन की बैटरी को सिर्फ 30 सेकेंड में ही फिर से चार्ज कर देगी। कंपनी ने नैनोडॉट्स बैटरी को इस्राइल के तेलअवीव में हुए माइक्रोसॉफ्ट थिंक नेक्स सिम्पोजियम में प्रदर्शित किया।
21 अप्रैल 2014 को आयी एक सूचना के अनुसार सी–डैक तिरुवअनंतपुरम, सी–डैक मुंबई, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी–मद्रास औऱ आईआईटी हैदराबाद ने मिलकर अनपढ़ किसानों की मदद के लिए एक नए सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन - संदेश पाठक को विकसित किया है। इसमें टेक्स्ट–टू–स्पीच तरीके का इस्तेमाल किया गया है। यानि किसान आपनी भाषा में सवाल पूछेगा। उसके पास पांच भारतीय भाषाओं–हिन्दी, तमिल, मराठी, गुजराती और तेलुगु में भाषा चुनने का विकल्प मौजूद है। उसकी आवाज़ के लिखित शब्दों में बदलकर मशीन अपने अंदर संचित जवाब को ढूंढ़ेंगी और फिर किसान की भाषा में जवाब देगी। यह एप्लीकेशन भारत सरकार के किसानों को संदेश पढ़ने में मदद करने के लिए शुरु की गई परियोजना का हिस्सा है. यह एप्लीकेशन एसएमएस संदेश को पढ़कर सुनाने की सुविधा देता है जिससे समझने में मदद मिलती है। इसे इसलिए विकसित किया गया है क्योंकि किसान एसएमएस में दिए गए सलाहों को पढऩे में असमर्थ थे जिसकी वजह से वे उपकरण का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे।
23 मई 2014 को मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित सूचना के अनुसार इटली के वैज्ञानिकों ने नवजात शिशुओं के लिए किडनी डायलिसिस मशीन का निर्माण किया। यह मशीन नवजात शिशुओं के विविध अंगो के काम न करने की स्थिति में सुरक्षा देने में सक्षम है। मौजूदा डायलिसिस मशीनों को जब बहुत छोटे बच्चों में प्रयोग किया जाता है तब बहुत जटिलता का सामना करना पड़ता है। नवजात शिशुओं की नलिका सामान्य से बहुत छोटी होती है जो नवजात शिशुओं की रक्त नलियों को सुरक्षा देने में सहायता प्रदान करती है।
2 जून 2014 को स्विट्जर्लैंड में सौर ऊर्जा से संचालित विमान ‘सोलर इंपल्स-2’ का सफल परीक्षण किया गया। इस विमान ने लगातार दो घंटे तक उड़ान भरी। कार्बन फाइबर से निर्मित ‘सोलर इंपल्स-2’ का वजन 2300 किलोग्राम है। इस विमान के डैनों की लंबाई 72 मीटर है, जिसपर 17 हजार सोलर सेल्स लगे हैं। सोलर सेल्स की मदद से इस विमान में लगा 633 किलोग्राम वजन का बैटरी चार्ज होता है, जिससे यह विमान संचालित होता है। इस विमान में पायलट के अलावा सिर्फ एक आदमी के बैठने की जगह है।

3 जून की एक खबर के अनुसार अब हमें बहुत सारे पासवर्ड याद रखने की झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। भारतीय मूल के वैज्ञानिक प्रोफेसर नितेश सक्सेना के नेतृत्व में बर्मिंघम के अलाबामा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ (University of Alabama at Birmingham) सुरक्षित लॉगइन प्रोटेक्शन के तौर पर जीरो इंटरेक्शन ऑथेंटिकेशन पर काम कर रहे हैं। इसके द्वारा उपकरण के उपयोग के बिना ही यूजर की लैपटॉप या एक एक टर्मिनल तक पहुंच हो सकेगी। पहुंच की मंजूरी तब मिलेगी जब छोटी दूरी, ब्लूटूथ जैसे वायरलेस कम्युनिकेशन चैनल पर ऑथेंटिकेशन प्रोटोकॉल का उपयोग होने के बाद पहचान करने वाला सिस्टम यूजर के मोबाइल फोन या कार की चाबी जैसे सिक्यूरिटी टोकन का पता लगा सकेगा।
5 जून, 2014 को जापान में मोबाइल फोन कंपनी सॉफ्टबैंक कॉर्प द्वारा भावनाओं और संवाद को समझने में सक्षम हैं दुनिया के पहले मानवीय रोबोट पीपर को अनावरण किया गया। यह रोबोट फ़रवरी 2015 से जापान में आम जनता के लिए उपलब्ध होगा और इसकी कीमत 1900 अमेरिकी डॉलर रखी गयी है। मानवीय रोबोट एक भावना इंजन से लैस है जो चेहरे की अभिव्यक्ति, शरीर की भाषा और आवाज की टोन को पढ़ कर भावनाओं को पहचान सकता हैं। सॉफ्टबैंक ने फ्रेंच रोबोट निर्माता एल्डरबरन रोबोटिक एसएएस के साथ हाथ मिलाने के बाद इसे डिजायन किया। यह लंबाई में 120 सेमी. है और इसका वजन 28 किलोग्राम है। पीपर सेंसर से लैस है इसके हाथ में स्पर्श सेंसर भी लगे है। यह मानव के साथ बातचीत करके बातें सीख सकते हैं और अनुभवों को इंटरनेट पर अपलोड कर सकते हैं और क्लाउड डेटाबेस के माध्यम से अन्य पीपर साथ साझा कर सकते है।
8 जून 2014 को भारत का कुडनकुलम उर्जा नाभिकीय संयंत्र 1000 मेगावाट बिजली पैदा करने वाला भारत का पहला नाभिकीय संयंत्र बना। कुडनकुलम नाभिकीय संयंत्र की प्रथम इकाई अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच गयी। कुडनकुलम से पहले गुजरात की टाटा मुंद्रा परियोजना 800 मेगावाट बिजली की क्षमता के साथ सबसे बड़ी एकल उत्पादन इकाई थी।
13 जून 2014 को जरनल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी का सबसे बड़ा जल भंडार संभवतः पृथ्वी के भीतर ही स्थित है। यह अध्ययन पश्चिमोत्तर भूभौतिक विद स्टीव जैकबसन औऱ यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको के भूकंपविज्ञानी ब्रैंडन मैन्डिट् ने किया था। इस अध्ययन से इस बात के पहली बार प्रमाण मिले हैं कि पृथ्वी की परत जिसे संक्रमण क्षेत्र (ट्रांजिशन जोन) यानि लोअर मेंटर और अपर मेंटल के बीच की परत, के तौर पर जाना जाता है– में पानी हो सकता है। अध्ययन में, भूभौतिक विद ने पाया कि भूमिगत मेग्मा की गहराई में उत्तरी अमेरिका में जमीन से 643 किलोमीटर नीचे पानी के होने के संकेत मिले हैं। यह पानी तरल, बर्फ या वाष्प के रूप में नहीं है। पानी का चौथा रूप मेंटल रॉक में खनिजों की आणविक संरचना में फंसा हुआ है। खोज में पता चला है कि पानी (H2O) उस जगह मौजूद है जहां खनिज रिंगवुडाइट्स हैं। खोज यह सुझाव देता है कि पृथ्वी की सतह से इतनी गहराई से पानी प्लेट टेक्टोनिक्स के जरिए बाहर निकाला जा सकता है जो गहरे मेंटर में पाए जाने वाले चट्टानों को आंशिक रूप से पिघला देता है। काफी समय से वैज्ञानिक इस बात की संभावना जता रहे थे कि पृथ्वी के मेंटल की चट्टानी परत में पानी फंसा हुआ है और यह 400 किलोमीटर से 660 किलोमीटर की गहराई में लोअर मेंटल और अपर मेंटल के बीच में है।

17 जून को प्रकाशित खबर के अनुसार वैज्ञानिकों ने पहली बार विटामिन ‘ए’ युक्त ‘सुपर बनाना’ (विशिष्ट केला) विकसित किया। ऑस्ट्रेलिया के ‘क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी’ के वैज्ञानिकों ने इसे विकसित कर लेने की घोषणा की। ‘सुपर बनाना’ विकसित करने हेतु सामान्य केले में जैविक (जीनोम) स्तर पर बदलाव करते हुए इसमें ‘बीटा-कैरोटीन’ तत्व का स्तर बढ़ाया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार ‘सुपर बनाना’ को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य, केले के माध्यम से शरीर में विटामिन ‘ए’ के स्तर को बढ़ाना है, जिससे अफ्रीका के गरीब देशों के लोगों के जीवन में सुधार लाया जा सके। विदित हो कि अफ़्रीकी देश युगांडा में विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण बच्चों में दृष्टिहीनता ने एक बड़ी समस्या का रूप धारण कर लिया है।

24 जून 2014 को  को प्रकाशित एक सूचना में बताया गया कि वैज्ञानिकों ने ऐसी संवेदनशील सतह प्रौद्योगिकी विकसित की है जो कि कंक्रीट संरचनाओं में दरारों का पता लगा सकती हैं।  उत्तरी कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी और पूर्वी फिनलैंड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह तकनीक विकसित की। यह प्रौद्योगिकी नाभिकीय संयंत्रों और पुलों को क्षति के समय त्वरित प्रतिक्रिया करने में सहायता देगा। जिससे बड़ी दुर्घटनाओं से हमारा बचाव होगा। हम यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आनेवाले वर्षों में यह तकनीक हमारे घरों की छतों को टपकने से रोकने में भी बहुत कारगर होगी।
13 जुलाई 2014 को भारत ने पहला स्वदेश निर्मित अनुसंधान जहाज ‘सिंधु साधना’ का जलावतरण किया। सिंधु साधना पोत को गोवा के मर्मूगावो बंदरगाह पर अंतरिक्ष एवं भू-विज्ञान राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह के करकमलों द्वारा लांच किया गया। सीएसआईआर-एनआईओ सिंधु साधना पोत के माध्यम से देश के विभिन्न दिशाओं में फैले समुद्रों के बारे में अध्ययन एवं इनके पर्यवेक्षण अभियानों को सुदृढ़ करने की योजना बनायी है।
अब इबोला वायरस से घबराने की जरूरत नहीं है। अमेरिका की दवा कंपनी मैप बायोफार्मास्युटिकल ने इबोला से ग्रस्त व्यक्तियों के इलाज के लिए ‘जेड मैप’ (ZMapp) नामक दवा अगस्त 2014 के पहले सप्ताह में पेश की। इस दवा को एक गुप्त सीरम बताया गया। यह मैप बायोफार्मास्युटिकल और कनाडा की कंपनी डिफाइरस (Defyus) द्वारा उत्पादित दवाओं का कॉकटेल है। यह दवा सबसे पहले अमेरिका के दो डॉक्टरों केंट ब्रैंट्ली और नैंसी राइटबो को दिया गया जो लाइबेरिया में इबोला के मरीजों का इलाज करते हुए इस वायरस से पीड़ित हो गए थे। यह दवा अमेरिका के खाद्य एवं दवा प्रशासन द्वारा विशेष अनुमति के बाद दी गई।
‘लाइव साइंस’ पत्रिका को अनुसार अब कंप्यूटर मनुष्यों की तरह सोच सकता है। अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों के एक समूह ने अगस्त 2014 के प्रथम सप्ताह में मानव मस्तिष्क की तरह काम करने वाली कंप्यूटर चिप ‘टूनॉर्थ’ विकसित करने की घोषणा की है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस कंप्यूटर चिप का आकार एक डाक टिकट जितना बड़ा है। इस चिप में 5.4 अरब ट्रांजिस्टर लगे हैं जो 10 लाख न्यूरॉन और 25.60 करोड़ न्यूरल कनेक्शन के समतुल्य क्षमता रखते हैं।
भारतीय न्यूरोसाइंटिस्ट पार्थ मित्रा को मानव मस्तिष्क का खाका बनाने के लिए अर्ली कॉन्सेप्ट ग्रांट्स फॉर एक्सप्लोरेटरी रिसर्च (ईएजीईआर) से 19 अगस्त 2014 को सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान राष्ट्रपति बराक ओबाका के हाथों मल्टी–ईयर बीआरएआईएन इनिशिएटिव के तहत प्रदान किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले पार्थ मित्रा को यह सम्मान नेशनल साइंस फाउंडेशन की शोधकर्ता फ्लोरिन अलबीएनू के साथ दिया गया।
सितंबर 2014 के दूसरे सप्ताह सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रोडायलेसिस की शुरुआत में की गई। यह तकनीक न पीने योग्य नमकीन पानी को स्वच्छ और पीने योग्य पेयजल में बदल देगा। इस प्रौद्योगिकी का विकास मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) भारत के शोधकर्ताओं ने किया। इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल आपदा राहत और सुदूर इलाकों में सेना कर सकती है। भारत का लगभग 60 फीसदी पानी खारा है।
भारत का महत्वाकांक्षी मिशन मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितंबर 2014 को प्रवेश कर गया। इसके साथ भारत मंगल तक पहुंचने वाला न सिर्फ पहला एशियाई देश बन गया है, बल्कि अपने प्रथम प्रयास में सफलता प्राप्त कर एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। यान को कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया सुबह 4:17 बजे ही शुरू हो गई थी। सुबह 07:17:32 बजे 440 न्यूटन की लिक्विड अपोजी मोटर (Liquid Apogee Motor) और आठ छोटे तरल इंजन 24 मिनट 16 सेकेंड के लिए चालू किया गया। यान की गति को 22.57 किमी/ सेकेंड से कम कर 4.6 किमी/सेकेंड किया गया था, जिससे यान मंगल ग्रह की कक्षा में आसानी से प्रवेश कर गया। सुबह 7:58 पर प्रक्रिया पूरी हो गई। मिशन पूरा होने की पुष्टि सुबह 8:01 बजे हुई. इस पूरी प्रक्रिया में 249.5 किलो ईधन का इस्तेमाल हुआ।
16 अक्तूबर 2014 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जिसे संक्षिप्त में इसरो कहते हैं, ने तीसरे नेविगेशन सेटेलाइट (IRNSS) 1सी को पोलर सेटेलाइट वेहकिल (PSLV) की सहायता से लांच किया। यह सेटेलाइट भू-वैज्ञानिकों और सुरक्षा के साथ भारत के अन्य विभागों को कार्य करने के लिए जरूरी सूचनाएं उपलब्ध करवाएगा।
17 अक्तूबर 2014 को भारत ने अपने पहले सूपरसोनिक क्रूज मिलाइल जिसका नाम निर्भया रखा गया है, का सफल परिक्षण किया। यह मिलाईल 1000 किमी तक मारक क्षमातावाली है।
06 नवम्बर 2014 को भारत के सुजलॉन कम्पनी ने दुनिया के सबसे ऊंचे विंड मील की स्थापना गुजरात के कक्ष में किया। यह 120 सीटर ऊँचा है तथा अन्य विन्ड टरबाइनों की तुलना में 15-20 प्रतिशत ज्यादा बिजली उत्पादन करेगा।
02 दिसम्बर 2014 को भारत ने अमेरिक, चीन, जापान और कनाडा के साथ दुनिया के सबसे बड़े दूरबीन निर्माण में सहयोग के लिए सदस्यता प्राप्त किया।
18 दिसम्बर 2014 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जिसे संक्षिप्त में इसरो कहते हैं, ने 630 टन वज़न के भारी GSLC मार्क-III नामक रॉकेट को आंन्ध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित धवन अंतरिक्ष केन्द्र से सफलतापूर्वक लांच किया।
20 दिसम्बर 2014 को प्रकाशित समाचार के अनुसार भोपाल के एक छात्र मयंक साहू ने ई-कोलाई बैक्टीरिया के जींस में बदलाव कर उसमें ऐसी क्षमता विकसित करने में कामयाबी हासिल की है, जो उद्योगों की चिमनियों और वाहनों से निकलने वाले धुंए में मौजूद हानिकारक गैसों को अवशोषित (एब्जॉर्ब) कर सकेगा। यह बैक्टीरिया इन तत्वों को अवशोषित कर इन्हें खाद में बदल देगा। यह खेतों की मिट्टी को उर्वरक बनाने में सहायक होगी। इस मॉडिफाइड बैक्टीरिया को उद्योगों की चिमनियों में एक डिवाइस के जरिए लगाया जाएगा। पिछले महीने अमेरिका में हुए इंटरनेशनलजेनेटिकली इंजीनियर्ड मशीन कॉम्पीटिशन में इस प्रोजेक्ट को कांस्य पदक मिला है। भोपाल के कैंपियन स्कूल से पासआउट मयंक आई.आई.टी दिल्ली में बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं। मयंक और उसकी टीम के इस प्रयोग को अमेरिका के प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने भी सराहा है। डिवाइस को एमआईटी की लैब में रखा गया है ताकि इसी प्रयोग पर दुनिया भर के रिसर्च स्कॉलर्स और काम कर सकें।
रंजू मिश्र
दिव्याँश 72ए सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णा रोड, पो.- सुदामानगर, इन्दौर – 452009 (म.प्र.) मो. +919425314126, email : mishra508@gmail.com

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