Sunday, 18 October 2009

दीपक

(एक)
मिट्टी धरती से
कपास खेतों से
तेल श्रमिकों से
और आग सूर्य से लिया उधार
मनुष्यों ने बनाया दीपक
जिसके जलते ही
घोर अंधकार में भी
जगमगाने लगी पृथ्वी
लो हो गयी दिवाली।

(दो)
न जाने कौन सी धुन है
जो जलाए रखती है इसको
जलता रहता है
अंधेरे के खिलाफ
अंधेरा जिसके भय से सूरज भी डूब जाता है
लेकिन दीपक है कि
जलता ही रहता है
और भोर हो जाती है।

(तीन)
उसने अपनी स्लेट पर लिखा - अ
लपलपायी दीपक की लौ
उसने अपनी स्लेट पर लिखा - ज्ञ
और दीपक बुझ गया
क्योंकि उसकी आग
बच्चे के दिल में पहुँच गयी थी
अब बच्चा देख सकता था
अंधेरा में भी सबकुछ साफ-साफ ।


(सभी मित्रों को दिवाली की शुभकामानाएँ - प्रदीप मिश्र)

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...