Wednesday 25 August, 2010

धूप,स्पर्श और कविता के अथाह में कवि कृष्ण कान्त निलोसे


एक रचनाकार जो शब्दों को अपने सिरहाने रखे, रात भर नींद का इन्तजार करता रहता है। एक रचनाकार जो बड़े और नामचीन के होड़ से बाहर खड़ा मुस्कुरा रहा है। एक रचनाकार जो चुपचाप बुन रहा है, झीनी-झीनी चदरिया। हाँ मित्रों एक ऐसे रचनाकार की बात कर रहा हूँ जो इन्दौर शहर के खुश्बू में बसा हुआ है और उसकी कविताऐं हिन्दी कविता की विकास यात्रा में एक कड़ी की तरह हैं। इस कड़ी का नाम कृष्णकांत निलोसे है।
निलोसे अपने समय को देखते हुए, जो जीवनदृष्टि अर्जित करते हैं, उसकी अभिव्यक्ति शब्दों से परे एक दुनिया में करते हैं। यह दुनिया कवि की अपनी दुनिया है। यहाँ मनुष्य, मनुष्य की तरह और देवता, देवता की तरह ही होते हैं। यथार्थ जिस धरातल पर स्वप्न बुनता है, ठीक वहीं से इन्द्र धनुष की यात्रा शुरू होती है। तभी तो उम्र के अस्सीवें पड़ाव पर पाँव रखते हुए भी वे प्रेम को सर्वाधिक महत्व के साथ स्वीकार करते हैं। उनकी कविताओं की पंक्तियाँ यहाँ पर सामयिक है - शताब्दियों के प्यास की / हट जाती है परत / छलछलाता है / नीला जल अथाह / मैं फिर उतरूँगा / धूप स्पर्श और कविता के / अथाह में / सिर्फ तुम्हारे लिए।"  या  "जाहिर नहीं होने देते, कतई / जो करते हैं प्यार / वे गंध की तरह आते हैं / और ढेर सारी स्मृतियों को छोड़कर / सिरहाने / पुनः मिलने का वादा करने के बाद / कभी नहीं लौटते।"  ऐसा एकदम नहीं है कि वे अपनी स्वप्निल दुनिया में रचे बसे यथार्थ से दूर हैं, जब वे लिखते हैं- " न ही होंगे / धुर्त धर्मग्रंथों की / काली जीभ मे उच्चारित / कुटिल प्रार्थनाओं के /उवाच / कैद भी नहीं रहेंगे / रहस्यमयी धारणाओं की लौह ,सलाखों के बीच / पाँखी से / फड़फड़ाते हुए / नमक-रोटी और हरी मिर्च के लिए / वे जागेंगे / उठ्ठेंगे कागज की सेज से /दौड़ेंगे / सड़कों चौराहों पर / सुलगते हुए।इन कविता पंक्तियों में अपने शब्दों की समर्थता पर अडिग विश्वास कवि की उस जीवंत संवेदना को रेखांकित करती है, जो हमारे समय के व्यवहारिक जीवन की जरूरत है। दादा के नाम से विख्यात निलोसे जी अपनी स्पष्टवादिता और बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। पिछले दिनों प्रगतिशील लेखक संघ से त्याग पत्र और उसके कारण के लिए वे पूरे साहित्य जगत में चर्चित रहे और बड़े-बड़े नामवरों को निरूत्तरित किया। हमारा समय और उसकी साहित्यिक और साँस्कृतिक जरूरतों को लेकर सार्थक बहस खड़े करनेवाले इस कवि की दो कविता पुस्तकें हमारे सामने हैं। अभी हाल में ही  संवाद प्रकाशन से प्रकाशित हुए उनकी प्रेम कविताओं के संकलन की चर्चा, साहित्य जगत में अभी  भी जारी है । लगभग दो और पुस्तकों की  पाण्डुलिपि पूरी हो रही है ।  कुछ प्रतिष्ठित सम्मान भी इनके हिस्से में दर्ज हैं। इस इक्कीस कम सौ साला कवि की रचनाशीलता युवा रचनाकारों के लिए चुनौती है। गहन विवेचना और संवेदना का इतना कठोर धरातल अपने अंतस में लिए कवि कहता है- "ऐसा होना तो नहीं चाहिए था / लेकिन ऐसा हो गया / करें क्या.....? / क्षमाप्रार्थी मुखौटे में मुस्कुराते हुए / धर्म निरपेक्ष आदमी का / राजनैतिक बयान-छः दिसम्बर..../ यह तिमिर युग है / यह पैशाचिक साम्राज्य / दुबके हुए लोगों का आत्म प्रलाप- छः दिसम्बर...." यहाँ पर वे पूरी तरह से अपनी राजनैतिक चेतना की दूरदृष्टि को स्थापित करते हैं। इस तरह से उनकी कविताओं में माँ, लड़की,गाँव,खेत,पहाड़,झील,बच्चे, ईश्वर,प्रकृति और हमारे समय के मूल्यों की छवियाँ पर्याप्त उपलब्ध हैं। उनकी कविताऐं समाज का दर्पण नहीं हैं, बल्की सृजनात्मकता से भरे चित्रों की तरह हैं। जिसमें पाठक को वह सबकुछ झलकता हुआ दिखाई देता है, जिसकी दरकार में उसे कविताओं का पनाह चाहिए।
 कृष्णकान्त निलोसे का जन्म 25 अगस्त 1931 को पूर्व में मध्यप्रदेश और वर्तमान में माहाराष्ट्र में स्थित चन्द्रपुर में हुआ। लगभग आधी शताब्दी से, वे अपनी रचनाशीलता की उपस्थिती लगातार दर्ज कर रहे हैं। लगभग सारी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं ने अपनी जगह सुरक्षित कर लिया है। उनकी सहजता और निर्मलता का ही परिणाम है कि इन्दौर का युवतम रचनाकार भीसमकक्ष की तरह से उनसे चर्चा कर सकता है। हम सब सृजनधर्मी उनकी लम्बी उम्र की कामना करते हैं और  वे तमाम कविताऐं जो उनकी संवेदनाओं के गर्भ में करवट बदल रहीं हैं उनका पाठ करना चाहते हैं। अंत में उनकी कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी बात समाप्त कर रहा हूं- "शहर में / आज फिर एक हत्या / दर्ज हुई / पुलिस रोजनामचे में / हत्यारा / नेजे की नोंक पर / उछालता सिर / हवा में / घूम लिया सारा शहर / और बेखबर लोग / ठंडे पानी से / अपना गला तरकर / मौसम पर बतियाते रहे।  (निलोसे दादा के 79वें जन्म दिन पर विशेष)

  प्रदीप मिश्र, दिव्यांश 72 सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णा रोड, इन्दौर-452013 (.प्र.)  
  फोन 0731-2485327  मो.9425314126, mishra508@yahoo.co.in 
    Blog : www.pradeepindore.blogspot.com 


3 comments:

Anonymous said...

निलोशे जी को बधाई।- अमृत बाजपेई।

गीता said...

अच्छा आलेख है। कविताओं के अंश प्रभावशाली हैं।- गीता शर्मा।

hari said...

प्रदीप जी बधाई। निलोशे जी को शुभकामनाऐं। - हरि

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