Monday, 4 August 2008

मानव सभ्यता का विकास -3



एथेन्स में दासों की संख्या स्वाधीन यूनानियों से बहुत ज्यादा थी। इनके श्रम के बल पर ही यूनान की सभ्यता का प्रकाश फैला था। एथेंस के कारखानों में ये दास ही काम करते थे। इसलिीए यह स्वाभाविक था कि व्यापारी और औद्योगिक वर्ग उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए शक्ति का उपयोग करें। एथेंस में फी नागरिक के पीछे अठारह गुलाम थे लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हर नागरिक के पास गुलाम थे और समाज से धनी-निर्धन का तीव्र वर्ग-भेद मिट गया था। ऐंगेल्स ने लिखा है, ``व्यापार और उद्योगधन्धों की प्रगति से थोड़े से लोगों में सम्पत्ति एकत्र और केंद्रित हुई। आम स्वाधीन नागरिक गरीब थे। उनके सामने दो ही रास्ते थे - या तो वे दस्तकारी में दास श्रमिकों से होड़ करें जिसे घृणित और त्याज्य समझा जाता था, इसके सिवा जिसमें सफलता की आशा भी बहुत कम थी - या पूरी तरह मुफलिस हो जाएँ। उस समय की परिस्थितियों में दूसरी बात ही हुई।`` इस मुफलिसी ने ही एथेन्स को तबाह किया। (पृष्ठ ४१-४२)
खेतों के काम करने वालो दासों को गरम लोहे से दाग दिया जाता था जिससे कि वे सदा पहचाने जा सके कि किस मालिक के हैं। रात को भेड़-बकरियों की तरह वे बाड़ों में बन्द कर दिये जाते थे और भूखे जानवरों की तरह सबरे खेतों में हाँक दिये जाते थे। युद्ध से गुलामों की कमी पूरी न होती थी तो गुलाम उड़ाने वाले डाकू उन्हें जुटाते थे। वर्षों तक ईजिप्टियन और पूर्वी भूमध्य सागर से ये डाकू लोगों को पकड़ लाते थे और उन्हें देलोस के बाजार में बेच देते थे। वहाँ से रोमन व्यापारी उन्हें इटली ले आते थे। (पृष्ठ ४३)
यह अत्याचार न सह सकने पर दासों ने कई बार विद्रोह किया। सिसिली में साठ हजार विद्रोही दासों ने अपने मालिकों को मार कर शहरों पर कब्जा कर लिया और अपना राज्य स्थापित कर लिया। रोमन फौज कई साल के संघर्ष के बाद ही उन्हें दबा पायी। इस विद्रोह के समय छोटे खेतों के मालिक, स्वाधीन किसान भी चुप नहीं बैठे। उन्होंने धनी भूस्वामियों के महलों में आग लगा दी। ``इसलिए दासों के विद्रोह से न केवल दासों की वरन् स्वाधीन लोगों में निर्धन किसान वर्ग की भी घृणा प्रकट हुई।`` (ब्रेस्टेड)। धनी और निर्धन का भेद इतना तीव्र हो गया था कि दोनों वर्ग एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हो गये थे। ``इटली दो बड़े सामाजिक वर्गों में बँट गया था।`` जो एक-दूसरे के खतरनाक ढंग से विरोधी था।`` (उप.)। एक और भूपतियों का वर्ग था जिनके पास दास और भूमि थी, दूसरी ओर दास और वे गरीब किसान थे जो भूपतियों की नीति से तबाह हो रहे थे। रोमन सामन्तों की युद्ध-नीति से साधारण जनता खुशहाल न हुई, वरन् और तबाह हुई। दूसरों को लूट कर वे जो सम्पदा लाते थे, उससे साधारण जनता को लाभ न था। युद्ध से लौटने पर रोमन सैनिकों को अपना खेत सुरक्षित न मिलता था। कर्ज के न चुका सकने पर अक्सर वह भूस्वामी के पास पहुँच जाता था। अगर खेत बचा भी रहा तो वह गुलामों द्वारा की जाने वाली बड़े पैमाने की खेती का मुकाबला न कर सकता था। बाहर से भी सस्ता अनाज मँगाया जाता था। आगे-पीछे खेत बेच कर किसान सर्वहारा बनकर रोम पहुँच जाता था। रोम का भव्य साम्राज्य उसके स्वाधीन किसानों ने ही कायम किया था। वहीं उससे तबाह हुए। एथेंस की तरह रोम के पतन का आंतरिक कारण ये मुफलिस बने। (पृष्ठ ४३-४४)
सबसे पहले प्रश्न यह है कि क्या वैदिक संस्कृति किसी विशेष प्रदेश की संस्कृति है। प्रदेश का सवाल भी तब उठता है, जब यह सिद्ध हो जाय कि इस संस्कृति के रचने वाले घुमन्तू जीवन न बिताते थे वरन् किसी प्रदेश में बस गये थे। श्री पुलास्कर ने भारत में आर्य बस्तियों की चर्चा करते हुए यह परिणाम निकाला है कि वैदिक ऋचाओं में जिस प्रदेश की चर्चा है, उसमें अफगानिस्तान, पंजाब, सिन्ध और राजस्थान के कुछ भाग, उत्तर-पश्छिमी सीमान्त प्रदेश, कश्मीर और सरयू नदी तक का पूर्वी प्रदेश आता है। (``वैदिक युग``)। पश्चिम के कुछ विद्वानों का मत रहा है कि ऋग्वेद का मुख्य क्षेत्र पंजाब है। दूसार और उसके बाद का मत है कि यह प्रदेश सरस्वती नदी के आसपास और अंबाला के दक्षिण का है।
कुछ लोगों का मत भी है कि अधिकांश मंत्र भारत के बाहर ही रचे गये थे। (पृष्ठ ४७)
........शेष अगली बार
(हिन्दी साहित्य में रामविलास शर्मा जी को इसलिए हमेशा याद किया जाएगा क्योंकि वे पहले समीक्षक हैं, जिन्होंने हिन्दी समीक्षा को व्यापक अर्थों में सामाजिक मूल्यों से जोड़ा है। न केवल जोड़ा है बल्कि उस पगडण्डी का निर्माण भी किया है, जिसपर भविष्य की समीक्षा को चलना होगा। अन्यथा हिन्दी समीक्षा अपनी दयनीय स्थिती से कभी भी उबर नहीं पाएगी। इस संदर्भ में इन्दौर के राकेश शर्मा ने रामविलास जी पर बहुत गम्भीरता से अध्ययन किया है। वे उनकी पुस्तकों से वे अंश जो वर्तमान समय की जिरह में प्रासंगिक हैं, हमारे लिए निकाल कर दे रहे हैं। हम एक सिलसिला शुरू कर रहे हैं, जिसकी दूसरी कड़ी आपके सामने है, जिसमें रामविलास शर्मा जी की पुस्तक मानव सभ्यता का विकास से निकाले गए अंश हैं। फोटो प्रदीप कांत के कैमरे से। पढ़ें और विचारों का घमासान करें। - प्रदीप मिश्र)

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