Tuesday 25 January, 2011

गिद्ध शाकाहारी नहीं होते


आधी शताब्दी से ज़्यादा दिनों तक
आज़ाद रहने के बाद
मैं जिस जगह खड़ा हूँ
वहाँ की ज़मीन दलदल में बदल रही है
और आसमान गिद्धों के कब्जे में है

लोकतन्त्र की लोक को
सावधान की मुद्रा में खड़ा कर दिया गया है
हारमोनियम पर एक शासक का
स्वागतगान बज रहा है

जब जयगान
तीन बार गा लिया जाएगा
तब बटेंगी मिठाइयाँ
मिठाइयाँ लेकर

जब लोग लौट रहे होंगे घर

झपटे मारेंगे गिध्द

गिध्द शाकाहारी नहीं होते हैं
फिर क्या खायेंगे वे
शुन्यकाल के इस प्रश्न पर
देश की संसद मौन है

( 26 जनवरी हमारे लिए श्रेष्ठ उत्सव का दिन है। एक भारतीय होने और नागरिकता बोध के इस उत्सव पर सारे देशवासियों को बधाई। इस समय लोग कश्मीर के लाल चौक पर झण्डावंदन के लिए एक युवा नेता कूच कर गए हैं और इस कूच के कारण जो अशान्ति और समस्याएं जन्म ले रहीं हैं वे भी हम सबके सामने है। यहाँ पर एक बात तो ठीक है कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है और हमारी आजादी और लोकतंत्र के सम्मान में लाल चौक पर झण्डा फहरना चाहिए। लेकिन जिस तरीके से यह पूरा मूहीस चल रहा है, वह देश और झण्डे का सम्मान कम अपने वोट बैंक की राजनीति ज्यादा दिख रहा है। हमारे देश की राजनीति को का दृष्टि मिलेगी और कब सारे राजनीतिज्ञ अपने दायित्वबोध को समझेंगे। ऐसा न हो यह स्वप्न भोर से पहले टूट जाऐ। हमें एक ऐसा देश चाहिए जहाँ लोकतंत्र और नागरिक बहैसियत रहते हों। खैर एक मेरी समसामयिक कविता दिख गयी सो लगा दिया। पढ़ें और विचार दें।-  प्रदीप मिश्र, दिव्याँश ७२ए सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णारोड, इन्दौर-४५२००९ (म.प्र), भारत.,फोन ०९१-०७३१-२४८५३२७, मो. ०९४२५३१४१२६, मेल – mishra508@yahoo.co.in, )

1 comment:

प्रदीप कांत said...

गिद्ध शाकाहारी नहीं होते हैं
फिर क्या खायेंगे वे
शुन्यकाल के इस प्रश्न पर
देश की संसद मौन है ।
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सही है लेकिन जब मनपसन्द खाने को न मिले तब भी कुछ तो खाया जाएगा। जैसे
नेता सद्भाव को खा रहे हैं
और नफरत उगा रहें हैं

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