दानापानी लीलाधर मण्डलोई की नई कृति है।
2008 में इसे मेधाबुक्स ने प्रकाशित किया है।
अपनी बात मैं एक गहरे संशय और भय के ऐन बीच
यह डायरी आपको (पाठकों को) सौंपता हूँ।
मुझे लगता है कि यह डायरी है भी और नहीं भी। - लीलाधर मण्डलोई।
कविता की पहली पंक्ति में शायद मंदिर था।
कविता की दूसरी पंक्ति में शायद ईश्वर था।
कविता की तीसरी पंक्ति में शायद मनुष्य था।
कविता की अंतिम पंक्ति में रक्त था।
रक्त में डूबी पंक्ति शायद कविता थी।
शायद कविता में डूबा एक पाठक था।
पाठक की आँखों में शायद क्रोध था।
शायद घृणा।
शायद कवि।
(डायरी का 83वाँ पन्ना शीर्षक
“पाठक की आँख”)
4 comments:
अदभुद द्वंद। बहुत बढीया चयन हैं।
रक्त में डूबी पंक्ति शायद कविता थी।
शायद कविता में डूबा एक पाठक था।
अदभुद।
अरूण और परेश आप आए और मगजमारी किया। बहुत अच्छा किया और आएं....हमेशा इन्तजार में रहूँगा। - प्रदीप
isee tarah acchchi kavitaaon ka chayan karate raha karo.
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