Tuesday 16 September, 2008

मानव सभ्यता का विकास -6

ईसा से लगभग पाँच हजार साल पहले मिस्त्र की प्राचीन संस्कृति का विकास हुआ। नील नदी की बाढ़ के कारण यहाँ की उर्वर धरती में जिस संस्कृति का विकास हुआ, उसका गहरा असर भुमध्यसागर के प्रदेशों पर पड़ा। यह प्राचीन संस्कृति बर्बर और अर्ध-बर्बर अवस्था की है। लोहे के औजार बनना अभी शुरू नहीं हुए। तांबा और कांसा मुख्य धातुएँ हैं। खेती (अर्थात् बागववनी) पहले हाथ से होती थी, फिर कुदाल को जुए से बाँधकर कर्षण द्वारा ``कृषि`` होने लगी। बागों के बदले क्षेत्रों को जोत-बो कर ``खेती`` होने लगी। जुए में बँधा हुआ कुदाल हल बना और बैल उसे खींचने लगे। इस तरह मनुष्य ने पशुओं के योग से अपने श्रम और उत्पादन की शक्ति बढ़ाई। (पृष्ठ ३२-३३)
प्राचीन संस्कृतियों में भारत की सिन्धु घाटी की सभ्यता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। ``मोहेज्जोदड़ो और सिन्धु घाटी की सभ्यता`` (१९३१) में सर जॉन मार्शल ने लिखा है कि पुरातत्व की खोज से चौथी सहस्त्राब्दी ई. पू. के जीवन का ही पता चलता है ``लेकिन मोहेज्जोदड़ो में ही पहले के और कई नगर एक-दूसरे के नीचे दफनाये पड़े हैं और उन तक अभी फावड़े की पहुँच नहीं हुई।`` सिन्ध और बलूचिस्तान मंे और नगरों के मिलने की संभावना बतलाई गई है। मार्शल के अनुसार हड़प्पा और मोहेज्जोदड़ो में वैसी संस्कृति मिली हैं, वह काफी दिनों से विकसित होती रही होगी। वह ``भारत की धरती पर काफी रूढ़िगत हो चुकी थी और उसके पीछे कई हजार वर्ष का मानव- श्रम निहित होना चाहिए।`` इससे सिद्ध होता है कि सिन्धुघाटी की संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है और यदि वह मिस्त्र की संस्कृति से पहले की नहीं है तो उसकी समकालीन अवश्य है। (पृष्ठ ३४-३५)
सिन्धुघाटी की संस्कृति का प्रभाव न केवल भारत पर वरन् अन्य देशों पर भी पड़ा। गॉर्डन चाइल्ड के शब्दों में यहाँ के विज्ञान का प्रभाव पश्चिम के विज्ञान पर पड़ा और इसलिए हमारे लिए वह ``ब्रौंज एज`` की संस्कृति नष्ट नहीं हुई वरन् हमारे न जानते हुए भी उसका काम आगे प्रगति का रहा है। (पृष्ठ ३७)
ऐंगेल्स के अनुसार यह बर्बर अवस्था की तीसरी और ऊँची मंजिल है जो सभ्यता के आरम्भ से घुलमिल जाती है। इस अवस्था की संस्कृति के निर्माण में एशिया की प्रमुख भूमिका है। अफ्रीका और अमरीका में यह संस्कृति विकसित हुई। यूरोप की देन अभी नगण्य है। (पृष्ठ ३७-३८)

इन प्राचीन समाजों के गर्भ में जो श्रम-विभाजन और वर्ग-विभाजन क्रमश: विकसित होता है, वह सामंती समाज की विशेषता है। हमें वर्ग-विभाजन का यह रूप नहीं मिलता कि समाज में एक ओर तो केवल दास हों और दूसरी और दासों के स्वामी हों। युद्ध आदि से दास प्राप्त होते है, उनसे उन्हीं लोगों की शक्ति बढ़ती है जो शेष समाज को यानी अपने सगोत्रियों को निर्धन बनाते जा रहे हैं और पूरे कबीले की अधिकांश भूमि अपने अधिकार में करते जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि सम्पत्तिशाली वर्ग के हित में जब राज्यसत्ता का जन्म होता है, तब वह केवल दासों का दमन करने के लिए नहीं होती वरन् समाज के ``स्वतंत्र`` किन्तु निर्धन सदस्यों के विरूद्ध भी उसका उपयोग होता है।(पृष्ठ ३८)
एथेन्स में दासों की संख्या स्वाधीन यूनानियों से बहुत ज्यादा थी। इनके श्रम के बल पर ही यूनान की सभ्यता का प्रकाश फैला था। एथेंस के कारखानों में ये दास ही काम करते थे। इसलिीए यह स्वाभाविक था कि व्यापारी और औद्योगिक वर्ग उन्हें नियंत्रण मेें रखने के लिए शक्ति का उपयोग करें। एथेंस में फी नागरिक के पीछे अठारह गुलाम थे लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हर नागरिक के पास गुलाम थे और समाज से धनी-निर्धन का तीव्र वर्ग-भेद मिट गया था। ऐंगेल्स ने लिखा है, ``व्यापार और उद्योगधन्धों की प्रगति से थोड़े से लोगों में सम्पत्ति एकत्र और कंेद्रित हुई। आम स्वाधीन नागरिक गरीब थे। उनके सामने दो ही रास्ते थे - या तो वे दस्तकारी में दास श्रमिकों से होड़ करें जिसे घृणित और त्याज्य समझा जाता था, इसके सिवा जिसमें सफलता की आशा भी बहुत कम थी - या पूरी तरह मुफलिस हो जाएँ। उस समय की परिस्थितियों में दूसरी बात ही हुई।`` इस मुफलिसी ने ही एथेन्स को तबाह किया। (पृष्ठ ४१-४२)
........शेष अगली बार
(हिन्दी साहित्य में रामविलास शर्मा जी को इसलिए हमेशा याद किया जाएगा क्योंकि वे पहले समीक्षक हैं, जिन्होंने हिन्दी समीक्षा को व्यापक अर्थों में सामाजिक मूल्यों से जोड़ा है। न केवल जोड़ा है बल्कि उस पगडण्डी का निर्माण भी किया है, जिसपर भविष्य की समीक्षा को चलना होगा। अन्यथा हिन्दी समीक्षा अपनी दयनीय स्थिती से कभी भी उबर नहीं पाएगी। इस संदर्भ में इन्दौर के राकेश शर्मा ने रामविलास जी पर बहुत गम्भीरता से अध्ययन किया है। वे उनकी पुस्तकों से वे अंश जो वर्तमान समय की जिरह में प्रासंगिक हैं, हमारे लिए निकाल कर दे रहे हैं। हम एक सिलसिला शुरू कर रहे हैं, जिसकी छठी कड़ी आपके सामने है, जिसमें रामविलास शर्मा जी की पुस्तक मानव सभ्यता का विकास से निकाले गए अंश हैं। पढ़ें और विचारों का घमासान करें। - प्रदीप मिश्र)

2 comments:

Arun Aditya said...

बहुत अच्छा काम कर रहे हो, बधाई।

प्रदीप कांत said...

अच्छा

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