Monday 22 September, 2008

हमारे समय का धिनौना सच दिल्ली हदसा

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पिछले दिनों दिल्ली में जो कुछ हुआ उसे हम सबने खूब जाँचा-परखा। निर्णय यह लिया गया कि मुसलमानों ने तबाही मचा दी है। सिमी और न जाने क्या-क्या। लेकिन सिमी को वजूद में आने और पैदा करने में किसका हाथ है ? और भविष्य किस दिशा में है ? कहीं हम एक आँख के चश्में से पूरी पृथवी देखने की कोशिश तो नहीं कर रहै हैं ? मित्रों अगर आप मनुष्य हैं और अपने देश-समाज से प्रेम करते हैं तो समय का तकाजा है कि आप दोनों आँखों से खुद देखें और मीडिया को भयानक झूठ का पुलिंदा समझें। कुछ अपवादों को छोड़ कर। इसे भी पढ़ें और सोचें क्या दिल्ली, अहमदाबाद और दूसरी जगहों का सच ठीक वही है, जो हमे समझाया जा रहा है। मित्रों इन अमाननीय कृत्यों के पीछे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता है, जिसका धर्म है। धर्म मनुष्यता के खिलाफ संभव नहीं है। चाहे वह 1992 दिसम्बर का अयोध्या हो या आज की दिल्ली। कहीं नहीं है - धर्म। इन काम को करने वाले हिन्दू-मुसलमान नहीं हैं। सत्ता और पूँजी के आगे जीभ लपलपाते कुत्ते हैं। यह संस्कृति गुजरात में सर्वाधिक पोषित हुई है, और अब सारे देश में फैल रही है। पिछले दिनों जनसत्ता में छपा सुभाष गाताड़े का यह आलेख हमारी आँखों पर बंधी पट्टियों को खोलता है। इसे जरूर पढ़ें, और सबको पढ़वाऐं । -प्रदीप
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24 अगस्त की जन्माष्टमी के दिन कानपुर में जिस बड़ी साजिश का पर्दाफाश हुआ, उससे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं। शिव शंकर मिश्रा नामक किन्हीं रिटायर्ड कर्मचारी द्वारा बने, एक निजी छात्रावास के एक कमरे में हुए प्रचंड बम विस्फोट में न केवल मिश्रा का अपना इकलौता बेटा राजीव तथा उसके दोस्तस भूपेंद्र सिंह की मौत हुई, बल्कि मौत का जितना सामान बरामद हुआ वह एक पुलिस अधिकारी की ज़बानी कहें तो ‘आधे कानपुर को तबाह कर सकता था’।

जैसा कि बताया जा चुका है कि इस भीषण विस्फोट में दो युवकों के चिथडे़ उड़ गये, कमरे की छत उड़ गयी और दीवारें चटख गयीं। मौके पर पुलिस ने ग्यारह जिंदा बम, इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां, टार्च की बैटरियां और भारी मात्रा में बारूद बरामद किया। इसके अलावा वहां से बम बनाने की सामग्री के तौर पर तीन किलो लेड आक्साइड, 500 ग्राम रेड लेड, एक किलोग्राम पोटैशियम और अमोनियम नायट्रेट, 2 किलो बम की पिनें, बारह बल्ब, 50 मीटर तार मिला। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि समूचे शहर में सीरियल बम धमाकों के लिए पर्याप्त सामग्री वहां थी।

गौरतलब है कि भूपेंद्र सिंह, जिसकी अपनी फोटोग्राफी की दुकान मशहूर जेके मन्दिर के पास थी, वह कुछ साल पहले बजरंग दल का नगर संयोजक था और राजीव भी बजरंग दल से जुड़ा था। आधिकारिक तौर पर बजरंग दल की तरफ से यही कहा जा रहा है कि दोनों ‘पिछले कुछ समय से सक्रिय नहीं थे।’ दूसरी तरफ पुलिस की तरफ से अभी इस बारे में कुछ कहा नहीं जा रहा है। क्या यह माना जाए कि पुलिस किन्हीं दबावों में काम कर रही है, ताकि बमकांड के असली सूत्रधारों तक पहुंचने से बचा जा सके? यह बेवजह नहीं कि इस कांड में ‘बब्बर खालसा’ का नाम भी उछाल दिया गया है। एक अग्रणी अख़बार (जागरण, 24 अगस्त 2008) ने ‘आतंकवाद विरोधी दस्ते’ के हवाले से यह ख़बर उड़ायी है कि शहर में तबाही मचाने की इस साजिश में लगभग मृतप्राय हो चुके बब्बर खालसा का नाम आया है। यह भी जोड़ा जा रहा है कि भूपेंद्र का रिश्ताप बब्बर खालसा फोर्स से था।

एक ऐसे समय में जबकि आतंकवाद के साथ समुदाय विशेष का या विशिष्ट धार्मिक मान्यतावाले तबकों का नाम जान बूझ कर उछाला जाता रहा है, यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती कि इस मामले की तह तक हम कभी पहुंच सकेंगे।

लोगों को याद होगा कि कुछ समय पहले ही मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने कई साक्षात्कारों में इस बात को दोहराया था कि ‘उनके पास इस बात के सबूत हैं कि संघ परिवार के लोग बम बनाने की घटनाओं में संलिप्त रहते हैं।’ और ऐसा नहीं कि वह यह बात पहली दफा कह रहे थे। पिछले साल भी उन्होंने मध्यप्रदेश के श्यामपुर, सिहोर आदि स्थानों से संघ परिवारी समर्थकों के घरों से बरामद बमों और अन्य विस्फोटक सामग्री के बारे में अपने साक्षात्कार में उजागर किया था। (भास्कर, 19 जुलाई 2007) ‘संघ भेजता है गुप्ती, बम तलवारें’ शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट में यह बात भी उजागर की गयी थी कि इसके अचानक बाद ही पास के नरसिंहपुर में साम्प्रदायिक घटनाओं में तेजी के समाचार मिले थे। इस सिलसिले में प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम भेजे अपने पत्र में उन्होंने सिहोर के पुलिस अधीक्षक के उस पत्र का भी हवाला दिया था कि पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद गिरफ्तार दो व्यक्तियों ने उन स्रोतों का उल्लेख नहीं किया था जहां से उन्हें हथियार मिले थे।

कानपुर में बजरंग दल से सम्बद्ध दो लोगों के बम विस्फोट में मरने और एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश होने से बरबस दो साल पहले महाराष्ट्र के नांदेड के उस चर्चित घटनाक्रम की याद ताजा होती है जब सिंचाई विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध थे -लक्ष्मण राजकोंडवार- के यहां हुए बम विस्फोट में उनका बेटा नरेश और बजरंग दल का स्थानीय नेता हिमांशु वेंकटेश पानसे मारे गए थे और चार लोग बुरी तरह जख्मी हुए थे। इस घटना के बाद जब मृतकों के घरों पर छापा डाला गया था तब पुलिस को इलाके में मस्जिदों के नक्शे तथा क्षेत्र के मुसलमानों द्वारा पहने जानेवाले ड्रेस और नकली दाढ़ी आदि सामान मिला था। पकड़े गए लोगों ने पुलिस को बताया था कि नांदेड की औरंगाबाद मस्जिद के सामने जुम्मे की नमाज के वक्त़ बम विस्फोट करने की उनकी योजना थी। बाद में यह बात भी उजागर हुई थी कि पिछले कुछ सालों में परभरणी, जालना आदि स्थानों पर महाराष्ट्र में मस्जिदों पर जुम्मे की नमाज के वक्त जो बम हमले हुए थे, उसमें इन्हीं लोगों का हाथ था। पहले मामले की तहकीकात में पुलिस ने आनाकानी की थी, लेकिन जब दबाव पड़ा तब उन्हें सीबीआई से जांच करवानी पड़ी थी। यह बात समझ से परे लगती है कि इतने बड़े कांड में शामिल होने के बावजूद सभी अभियुक्त अभी जमानत पर हैं। उसी नांदेड में फरवरी 2007 में शास्त्रीनगर इलाके में एक दूसरा विस्फोट हुआ था, जिसमें भी हिन्दूवादी संगठनों के दो लोग मारे गए थे। पहले पुलिस ने कहा कि बिजली के शार्टसर्किट से यह हादसा हुआ, लेकिन जब मानवाधिकार संगठनों ने इस बात को उजागर किया कि इस गोदाम में कोई बिजली कनेक्शन नहीं था, तब पुलिस को अपनी जांच की दिशा बदलनी पड़ी थी।

यह बात महत्वपूर्ण है कि हर 6 अप्रैल को बजरंग दल के कार्यकर्ता नांदेड में पटाखे छोड़ कर ‘शहीद दिवस’ मनाते हैं, और एक तरह से अपने ‘शहीदों’ को याद करते हैं जो मस्जिद के बाहर रखने के लिए बम बनाने के दौरान मारे गए थे। (द मेलटुडे, 26 अगस्त 2008)

नांदेड की घटना को अगर ‘हिन्दू आतंकवाद’ का चर्चित आगाज़ कहा जा सकता है तो विगत दो सालों में ऐसी कई घटनाएं दिखती है जहां खुल्लमखुल्ला अतिवादी हिन्दू युवा आतंकी कार्रवाइयों में मुब्तिला दिखते हैं। तमिलनाडु के तेनकासी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय पर हुआ बम हमला (24 जनवरी 2008) इसकी एक नायाब मिसाल कहा जा सकता है जिसमें रवि पांडियन, ,स कुमार और वी नारायण शर्मा जैसे हिन्दू मुन्नानी के कार्यकर्ता पकड़े गए थे। ‘द हिन्दू’ (6 फरवरी 2008) के मुताबिक पुलिस ने इन लोगों से बम और विस्फोटक भी बरामद किए। हिन्दू मुन्नानी के इन कार्यकर्ताओं ने समूचे इलाके में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने के मकसद से इस घटना को अंजाम दिया था।

फरवरी और मई-जून में महाराष्ट्र के पनवेल (20 फरवरी 2008) में जोधा अकबर के प्रदर्शन के दौरान और वाशी में विष्णुदास भावे आडिटोरियम (31 मई 2008) और ठाणे में गडकरी रंगायतन (4 जून 2008) में ‘आम्ही पाचपुते’ नामक चर्चित नाटक के प्रदर्शन के दौरान हुए बम विस्फोटों को इसी सिलसिले की अगली कड़ी कहा जा सकता है। महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने बहुत पेशेवर ढंग से काम करते हुए अंततः इन बम विस्फोटों के लिए जिम्मेदार ‘सनातन संस्था’ और ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के कार्यकर्ताओं को गिरतार कर जेल भेज दिया है।

निष्कर्ष के तौर पर यह अवश्य पूछा जा सकता है कि क्या कानपुर, तेनकासी, ठाणे, नांदेड में हिदू अतिवादियों द्वारा अंजाम दी गई इन घटनाओं को एक-दूसरे के साथ जोड़ कर देख सकते हैं या नहीं ?

यह सहज ही आकलन किया जा सकता है कि हिंदू राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करने वाली इन जमातों ने अपनी रणनीति में बारीक बदलाव किया है और अब जगह-जगह ऐसी आतंकी कार्रवाइयां करने की योजना बनाई है, ताकि वह उन्हीं के बहाने अल्पसंख्यकों का दमन कर सकें।

दरअसल, अब वक्त आ गया है कि हम उत्तर-औपनिवेशिक भारत में आतंकवाद की परिघटना की नए सिरे से पड़ताल करें और समुदाय विशेषों को बदनाम करने के सिलसिले पर निगाह डालें। शायद तभी हम उस सहजबोध को खारिज कर सकेंगे, जिसके तहत आतंकवाद और धर्म-विशेष में गहरा रिश्ता ढूंढ़ लिया जाता है।

8 comments:

Arun Aditya said...

धर्म मनुष्यता के खिलाफ संभव नहीं है। चाहे वह 1992 दिसम्बर का अयोध्या हो या आज की दिल्ली। कहीं नहीं है - धर्म।
sahi baat hai.

रंजन राजन said...

अब वक्त आ गया है कि हम उत्तर-औपनिवेशिक भारत में आतंकवाद की परिघटना की नए सिरे से पड़ताल करें और समुदाय विशेषों को बदनाम करने के सिलसिले पर निगाह डालें।

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख!!आभार!!!

त्यागी said...

जहाँ तक मेरी समझ है.....जब देश किसी गहरे संकट की ओर जा रहा हो तो समझ लेना चाहिये कि किसी पढे लिखे चालाक बुद्धिजीवी ने अपना मुह खोला है या फिर कोई समझदार बुद्धिजीवी अपने काम को करने से जान बूझकर बच रहा है........ऐसा देश के बंटवारे के समय हम देख चुके है। आज फिर वही परिस्थितियां बनती दिख रही हैं

प्रदीप मिश्र said...

बंधुओं आप सब की प्रतिक्रिया हमें आश्नस्त करती है कि ताकत हमारे पास भी है। हम सब कुछ न कुछ तो बचा ही लेंगे जो भविष्य में बरगद की तरह उगेगा। एक जूटता और तल्खी बनाये रखें। आभार।

प्रदीप कांत said...

Ab dharm ki aad lekar koi bhi kuch bhi kar sakata hai. Kintu yah samajhana behad jaroori hai ki dharm ki aad lene valon ka koi dharm hai hi nahin.

Ek ziddi dhun said...

dikkat ye hai ki buddhijeevi tabka is sawal se munh chura raha hai aur is tarh sangh pariwar ke aage samarpan kar chuka hai

इरशाद अली said...

ये बेहद धारदार लेखन है आप इतनी धार लाते कहां से है। कुछ और सूक्ष्म विषयों पर भी हाथ आजमायें।

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