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जिस दिन उसे फांसी लगी
उसकी कोठरी से
उसी लेनिन की एक किताब
बरामद हुई थी
जिसका एक पन्ना
मोड़ा हुआ था
देश की जवानी को
उसके आखिरी दिन के मोड़े हुए
पन्ने से आगे बढ़ना है। -अवतार सिंह पाश
सांडर्स मर्डर केस के मामले में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाते हुए लाहैर हाईकोर्ट के जस्टिस फोर्ड ने भी अपने फैसले में लिखा था – यह बयान कोई गलती न होगी कि ये लोग दिल की गहराई और पूरे आवेग के साथ वर्तामान समाज के ढांचे को बदलने की इच्छा से प्रेरित हैं। भगत सिंह एक ईमानदार और सच्चे क्रांतिकारी हैं। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि वे स्वप्न को लेकर पूरी सच्चाई से खड़े हैं कि दुनियां का सुधार वर्तमान सामाजिक ढांचे को तोड़कर ही हो सकता है।
भगत सिंह और उनके साथियों के दिमाग में स्पष्ट था कि वे कैसी आजादी चाहते हैं। अपनी शहादत के तीन दिन पूर्व 20 मार्च को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव ने पंजाब के गवर्नर को पत्र लिखकर मांग की थी कि उन्हे फांसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये। इस पत्र में उन्होंने लिखा था – हम यह कहना चाहते हैं कि, युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूँजीपति और अंग्रेज सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूंजीपति के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तो भी अस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता।
भगवती चरण बोहरा द्वारा लिखित पैम्फलेट बम का दर्शन जिसे भगत सिंह ने अंतिम रूप दिया और जो 26 जनवरी 1930 को देश भर में बांटा गया था, में आजाद भारत की कल्पना करते हुए कहा गया है – क्रांतिकारियों को विश्वाश है कि देश को क्रांति से ही स्वतंत्रता मिलेगी। वे जिस क्रांति के लिए प्रयत्नशील हैं...उसका अर्थ केवल यह नहीं है कि विदेशी शासकों तथा उनके पिट्ठूओं ले ....के साथ-साथ नवीन सामाजिक व्यवस्था के द्वार देश के लिए खुल जाएं। क्रांति पूमजीवाद, वर्गवाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलानेवाली प्रणाली का अंत कर देगी। ...क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर तथा किसानों का राज्य कायमकर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो देश की राजनैतिक शक्ति को हथियाए बैठे हैं। -(उस मोड़े हुए पन्ने से आगे से लिए गए अंश)
यह चित्र एवं सामग्री लोकजतन के सम्पादक श्री जसविंदर सिंह द्वारा लिखित पुस्तिका उस मोड़े हुए पन्ने से आगे के कवर से लिया गया है। इस पुस्तिका का प्रकाशन 13-बी, पद्मनाभन नगर, न्यू सुभाष कोलोनी भोपाल (म.प्र.) से हुआ है।
तो क्या हमें ऐसा नहीं लगता है कि भगत सिंह की शहादत दिवस को मनाकर हम अपराध कर रहै हैं ? क्योंकि वे जिस तरह के आजाद भारत के लिए अपनी जवानी कुर्बान करके गए थे, हम ठीक विपरीत तरह का भारत बना रहें है। यह सचमुच किसी भी देश के नागरिकों के लिए शर्मानाक है। - प्रदीप मिश्र
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यह चित्र पं. रामप्रसाद बिस्मिल प्रतिष्ठान, भोपाल, (म.प्र.) द्वारा प्रकाशित स्मारिका क्रान्ति समरगाथा से लिया गया है।
2 comments:
प्रदीप,
इस बात से मेरी भी सहमति है। आज भी हमारी स्थिति वही है जो आज़ादी से पहले थी। पहले अंग्रेज पूंजीपति आर्थिक शोषण कर रहे थे तो अब शुद्ध भारतीय पूंजीपति। और हमारी तमाम तथाकथित सरकारें उनके साथ हैं। पर सवाल यह है कि क्या जनता का कोई भी तबका इसका विरोध कर रहा है? मुझे तो कोई विरोध नज़र नहीं आता। बकौल ग़ालिब
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
और जब हमारी सरकारें अपना आप बचाने के लिये पूंजीपतियों से गठबन्धन बना चुकी हैं तो किसका और कौनसा विरोध काम करेगा? मित्र, इस देश में लोकतन्त्र है ज़रूर, पर उसका उपयोग केवल तमाम मूर्खता पूर्ण विचारधाराओं और व्यवस्थाओं को लागू करने/करवाने के लिये होता है। अब ये ताकत चाहिये कि इस लोकतन्त्र में आप अपनी तमाम सही चीज़ों को मनवा सको। ये अपराध बोध मुझे भी है कि ये भारत भगत सिंह के सपनो के विपरीत का भारत है। किन्तु क्या ये अपराध बोध भगत सिंह का शहादत दिवस नहीं मनाने पर कम हो जाऐगा। दरअसल इस बहस के पीछे भी हमारा मकसद तो दुश्यन्त कुमार की तरह होना चाहिये
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये
इसके लिये ये सवाल खड़ा करना ज़रूरी था जो आपने किया। बहरहाल, सवाल ज़रूरी हैं, उठाते रहिये।
विचारोत्तेजक लेख है। प्रदीप तुमने बिल्कुल सही लिखा है की वे जिस तरह के आजाद भारत के लिए अपनी जवानी कुर्बान करके गए थे, हम ठीक विपरीत तरह का भारत बना रहे हैं। यह सचमुच किसी भी देश के नागरिकों के लिए शर्मानाक है।
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