प्राचीन संस्कृतियों में भारत की सिन्धु घाटी की सभ्यता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। ``मोहेज्जोदड़ो और सिन्धु घाटी की सभ्यता`` (१९३१) में सर जॉन मार्शल ने लिखा है कि पुरातत्व की खोज से चौथी सहस्त्राब्दी ई. पू. के जीवन का ही पता चलता है ``लेकिन मोहेज्जोदड़ो में ही पहले के और कई नगर एक-दूसरे के नीचे दफनाये पड़े हैं और उन तक अभी फावड़े की पहुँच नहीं हुई।`` सिन्ध और बलूचिस्तान में और नगरों के मिलने की संभावना बतलाई गई है। मार्शल के अनुसार हड़प्पा और मोहेज्जोदड़ो में वैसी संस्कृति मिली हैं, वह काफी दिनों से विकसित होती रही होगी। वह ``भारत की धरती पर काफी रूढ़िगत हो चुकी थी और उसके पीछे कई हजार वर्ष का मानव- श्रम निहित होना चाहिए।`` इससे सिद्ध होता है कि सिन्धुघाटी की संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है और यदि वह मिस्त्र की संस्कृति से पहले की नहीं है तो उसकी समकालीन अवश्य है। (पृष्ठ ३४-३५)
सिन्धुघाटी की संस्कृति का प्रभाव न केवल भारत पर वरन् अन्य देशों पर भी पड़ा। गॉर्डन चाइल्ड के शब्दों में यहाँ के विज्ञान का प्रभाव पश्चिम के विज्ञान पर पड़ा और इसलिए हमारे लिए वह ``ब्रौंज एज`` की संस्कृति नष्ट नहीं हुई वरन् हमारे न जानते हुए भी उसका काम आगे प्रगति का रहा है। (पृष्ठ ३७)
ऐंगेल्स के अनुसार यह बर्बर अवस्था की तीसरी और ऊँची मंजिल है जो सभ्यता के आरम्भ से घुलमिल जाती है। इस अवस्था की संस्कृति के निर्माण में एशिया की प्रमुख भूमिका है। अफ्रीका और अमरीका में यह संस्कृति विकसित हुई। यूरोप की देन अभी नगण्य है। (पृष्ठ ३७-३८)
इन प्राचीन समाजों के गर्भ में जो श्रम-विभाजन और वर्ग-विभाजन क्रमश: विकसित होता है, वह सामंती समाज की विशेषता है। हमें वर्ग-विभाजन का यह रूप नहीं मिलता कि समाज में एक ओर तो केवल दास हों और दूसरी और दासों के स्वामी हों। युद्ध आदि से दास प्राप्त होते है, उनसे उन्हीं लोगों की शक्ति बढ़ती है जो शेष समाज को यानी अपने सगोत्रियों को निर्धन बनाते जा रहे हैं और पूरे कबीले की अधिकांश भूमि अपने अधिकार में करते जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि सम्पत्तिशाली वर्ग के हित में जब राज्यसत्ता का जन्म होता है, त बवह केवल दासों का दमन करने के लिए नहीं होती वरन् समाज के ``स्वतंत्र`` किन्तु निर्धन सदस्यों के विरूद्ध भी उसका उपयोग होता है। (पृष्ठ ३८)
........शेष अगली बार
(हिन्दी साहित्य में रामविलास शर्मा जी को इसलिए हमेशा याद किया जाएगा क्योंकि वे पहले समीक्षक हैं, जिन्होंने हिन्दी समीक्षा को व्यापक अर्थों में सामाजिक मूल्यों से जोड़ा है। न केवल जोड़ा है बल्कि उस पगडण्डी का निर्माण भी किया है, जिसपर भविष्य की समीक्षा को चलना होगा। अन्यथा हिन्दी समीक्षा अपनी दयनीय स्थिती से कभी भी उबर नहीं पाएगी। इस संदर्भ में इन्दौर के राकेश शर्मा ने रामविलास जी पर बहुत गम्भीरता से अध्ययन किया है। वे उनकी पुस्तकों से वे अंश जो वर्तमान समय की जिरह में प्रासंगिक हैं, हमारे लिए निकाल कर दे रहे हैं। हम एक सिलसिला शुरू कर रहे हैं, जिसकी दूसरी कड़ी आपके सामने है, जिसमें रामविलास शर्मा जी की पुस्तक मानव सभ्यता का विकास से निकाले गए अंश हैं। पढ़ें और विचारों का घमासान करें। - प्रदीप मिश्र)
1 comment:
रामविलास जी को पढ़ना अच्छा लग रहा है।
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