Sunday, 20 July 2008
अधिकारी-नेता-कलर्क सबने
मेघराज
(एक)
गृहणियों ने घर के सामानों को
धूप दिखाकर जतना दिया है
छतों की मरम्मत पूरी हो चुकी है
नाले-नालियों की सफाई का
टेंडर पास हो गया है
अधिकारी-नेता-कलर्क सबने
अपना हिस्सा तय कर लिया है
और तुम हो कि
आने का नाम ही नहीं ले रहे हो
चक्कर क्या है मेघराज
कहीं सटोरियों का जादू
तुम पर भी तो नहीं चल गया
क्रिकेट से कम लोकप्रिय तुम भी नहीं हो
आओ मेघराज
तुम्हारे इंतजार में बुढ़ा रही है धरती
खेतों में फसलों की मौत का मातम है
किसान कर्ज और भूख की भय से
आत्महत्या कर रहें हैं
आओ मेघराज इससे पहले कि
अकाल के गिध्द बैठने लगें मुँडेर पर ।
(दो)
मेघराज तुम पहली बार आए थे
तब धरती जल रही थी विरह वेदना में
और तुम बरसे इतना झमाझम
कि उसकी कोख हरी हो गई
मेघराज तुम आए थे कालीदास के पास
तब वे बंजर जमीन पर कुदाल चला रहे थे
तुम्हारे बरसते ही उफन पड़ी उर्वरा
उन्होंने रचा इतना मनोरम प्रकृति
मेघराज तुम तब भी आए थे
जब जंगल में लगी थी आग
असफल हो गए थे मनुष्यों के सारे जुगाड़
जंगल के जीवन में मची हुई थी हाहाकार
और अपनी बूंदों से
पी गए थे तुम सारी आग
मेघराज हम उसी जंगल के जीव हैं
जब भी देखते हैं तुम्हारी तरफ
हमारा जीवन हराभरा हो जाता है
आओ मेघराज
कि बहुत कम नमी बची है
हमारी आँखों में
हमारा सारा पानी पी गया सूरज
आओ मेघराज
नहीं तो हम आ जाऐंगे तुम्हारे पास
उजड़ जाएगी तुम्हारी धरती की कोख।
-प्रदीप मिश्र मो.9425314126
( मित्रों इस समय बरसात के रिमझिम के लिए टकटकी लगाए महाराष्ट्र और म.प्र. के किसानो की आँख पथरा रही है। उनकी आवाज में मैं अपनी कविता को शामिल करने की गरज से यहाँ रखा रहा हूँ। हमारी मित्र मण्डली के प्रदीप कांत ने इस कविता की संवेदना को और गहन करने के लिए विशेषरूप से इस फोटो को उपलब्ध कराया है। प्रदीपकांत राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्यौगिकी केन्द्र में युवा वैज्ञानिक हैं। इनकी गजलों का एक संग्रह तैयार है। इन दिनों फोटोग्राफी में हाथ अजमा रहे हैं। फोन. 0731-2320041) )
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2 comments:
अच्छा लगा इन रचनाओं को पढ़ना. आभार.
आओ मेघराज इससे पहले कि
अकाल के गिध्द बैठने लगें मुँडेर पर ।
Badhiya kavita.
Pradeep Kant
Madhu Kant
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